Sunday, February 26, 2012

Antardweep ki Gehraaiyan

अंतर्द्वीप की गहराइयाँ

चाहता  हूँ  तुम्हे  हसाना
पर  कभी  रुला  देता  हूँ
नींद  से  जागने  की  कोशिश  में
मेरा  सपना  अधुरा  छोड़  देता  हूँ
यह  लम्बी  कतारे  है  तलवारों  जैसी
मुझे  तो  बस  नौक  पर  चलना  पसंद  है
वक़्त  के  तकाजे  से  डरे  या  न  डरे
जीना  तो  हर  एक  पल  में  है

दिल  तो  इंतज़ार  में  है
कब  यह  मौसम  रूहानी  हो  जाए
नींद  से  में  जाग  जाऊ
और  सपना  भी  पूरा  हो  जाए
शुरुआत  न  जाने  कहा  से  थी
मगर  अंत  तो  इसका  तुम्ही  हो
चाहा  था  तुम्हे  हसाना
पर
तुम्ही  कभी  मुझे  रुला  देती  हो

- अजिंक्य