Friday, December 30, 2011

Yeh Kaisa Darr ? (hindi)

     यह कैसा डर ?

यह कैसा डर ?
भीड़ में गूम हो जाने का डर
राह में अकेला पड़ जाने का डर
कोई एक गलती हो जाने का डर

या  
कभी कोई रूठ जाने का डर  
खुद पर से यकी छूठ जाने का डर?!
क्यों? क्यों है यह डर ?!

दिन ढल जाने के बाद
शाम रुक जाने के बाद
रात की काली परछाई जैसा
कभी चुपके से दिल में आ जाता है यह डर

आकर इन नन्ही धड्कनोको बढ़ाता
रह रहकर इस दिल को तड़पाता
बेचारा दिल यह सह जाता
कितना कुछ कर जाता यह डर

दिल को क्या समझाए ?
तुम धड़कना छोड़ दो ?
मन की इस पीड़ा के आगे
शर्मसार होकर घुटने टेक दो ?
चेहरे पर आंसू लाकर वहीँ उन्हें सुक जाने दो?

माना यह जंग इतनी आसान नहीं
डर के आगे बेबस हो जाए इसलिए इंसान नहीं
यह डर तो बस मन का एक वहम है
हमसे छल करना ही इसका करम है
दिल में एक मशाल तुम जलाओ
यकीं खुद पर, भरोसा अपनों पर लाओ

डर को ना लाओ ज़िन्दगी में फिर कभी तुम
मन के आज़ादी की शायद है यही धुन

                                   - अजिंक्य

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